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Experience

मैं ब्रह्माकुमारी से क्यों जुड़ा हूँ |

सन् 2008,  स्थान दिल्ली – शाम को TV channel बदलते हुए, देखा, कि एक महिला, आस्था channel पर, कुछ बोल रही हैं | जो बोल रही थीं बहुत logical लगा और कुछ अलग, कुछ हट कर लगा | पता चला कि ये ब्रह्माकुमारी शिवानी हैं |  हम रोज सुनने लगे | फिर हम लखनऊ आ गए | घर के पास एक ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय था | सोचा, चल कर देखा जाये इस विश्वविद्यालय में क्या पढ़ाया जाता  है ? जो पढ़ाया गया, बताना मुश्किल है वो अनुभव करने वाला है | हम यहीं  के हो कर रह गए |

हम अपने बच्चों को स्कूल में क्यों भेजते हैं ? संस्कार तो माँ बाप दे सकते हैं और कुछ तो पढ़ा भी सकते हैं परन्तु फिर भी सब अपने बच्चों को स्कूल में भेजना चाहते हैं | उनकी क्षमता न हो तो बात अलग है   लेकिन चाहते सब हैं बच्चों को स्कूल में भेजना | पढ़े लिखे लोग तो और भी महंगे और बड़े  स्कूल में भेजते हैं | क्या कारण है ?

  1. ज़रूरी नहीं कि सब माँ बाप पढ़े लिखे हों और बच्चों को पढ़ा सकें |
  2. घर पर माँ बाप व्यवस्थित रूप से नहीं पढ़ा सकते जब तक खुद व्यवस्थित रूप में न पढ़ा हो और ऐसे लोग गिनती के होते हैं |
  3. माँ बाप को बच्चा taken for granted ले लेता है, कहना नहीं मानता, पढ़ता नहीं और माँ बाप कुछ नहीं कर पाते | घर में अनुशासन नहीं रहता |
  4. माँ बाप चाहते हैं बच्चा, और बच्चों के साथ रहकर दुनियादारी सीखे और अप टू डेट रहे जो

घर पर नहीं हो सकता |

अब देखें स्कूल में क्या होता है |

  1. पहली चीज़ यूनिफौर्म होती है | यूनिफौर्म मतलब – एक सा | यूनिफौर्म हो तो आप ये अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि किस status का बच्चा है, संभ्रांत परिवार या गरीब परिवार का  है, भेद भाव नहीं होता ऐसे में | अतः विभिन्न जाति व् background के बच्चों को आरम्भ से एक समान रहना सिखाया जाता है |
  2. ज्ञान दिया जाता है | पढ़ाई व्यवस्थित रूप में होती है | बाकायदा सब्जेक्ट व् पाठ्यक्रम  होता है |
  3. सबको एक समान रूप से पढ़ाया जाता है और देखा जाता है | वर्ण जाति का भेद नहीं होता | अतः पक्षपात नहीं होता |
  4. अच्छे संस्कार सिखाए जाते हैं |
  5. सीखा हुआ भूल न जाएँ इसलिए revision होता है |
  6. होमवर्क मिलता है |
  7. पुस्तकों को पढ़ाने के लिए एक निर्धारित नीति होती है | इसीलिए माँ बाप बच्चों को स्कूल में भेजते हैं |

चलिए अब हम धर्म व् आध्यात्म को देखते हैं |

ज्ञान की अनेकों पुस्तक, वेद, उपनिषद, पुराण, धार्मिक नेता, अनेकों तीर्थों पर अनगिनित श्रद्धालुओं के जाने के बावजूद, महंगे से महंगे चढावे के बावजूद, सोने के मुकुटों के चढ़ावे के बावजूद व् भंडारों के बावजूद क्या  संस्कार अच्छे हुए ? क्या murders व् बलात्कार कम हुए ? क्या अस्पताल व् बीमारियाँ कम हुईं ? अहंकार  कम हुआ या बढ़ा ? हिंसा कम हुई या बढ़ी ? शराब पीना कम हुआ या बढ़ा और इसके फलस्वरूप क्या पारिवारिक झगड़े कम हुए या बढ़े ? मांस खाना बढ़ा तो हिंसा कम हुई या बढ़ी ? यदि ऐसा नहीं हुआ है तो मतलब है कि हमने गलत राह पकड़ी है या दिशा निर्देशन में कहीं कमी रही है |

ऐसा क्यों हुआ ?

एक पढ़े लिखे और बिना पढ़े लिखे की कार्य पद्यति, निर्णय क्षमता अलग अलग होगी | जिस प्रकार उस बच्चे का हाल होगा जो पढ़ा लिखा नहीं, सही निर्णय नहीं ले पाता, जैसा जिसने कह दिया मान लिया, भटकता रहता है, ऐसा ही हाल, आध्यात्म  या धर्म को व्यवस्थित रूप  से न पढ़ने से होता है | हम बच्चे से पूछते है कौन से स्कूल में पढ़ते हो या पढ़े थे और उसकी अक्ल का अंदाज़ा लगाते हैं, क्या हमने किसी से पूछा कि धर्म या आध्यात्म  का ज्ञान कौन से स्कूल से लिया है ?

हकीकत ये है कि द्वापर से भक्ति मार्ग में व्यवस्थित रूप से पढ़ाई हुई ही नहीं | जैसा पंडितों ने कह दिया वैसा वैसा करते गए | वेद पुराण और उपनिषद की व्याख्या अपने स्वार्थ के लिए होने लगी | लोग राम,‌‍ कृष्ण, जगन्नाथ, बुद्ध, दुर्गा, लक्ष्मी और अनेकों देवी देवताओं व भगवानों में बंट गए | कोई uniformity नहीं रही | संस्कार परिवर्तन की जगह और बुरे संस्कार होते चले गए और उसका परिणाम हम देख ही रहे हैं | भक्ति मार्ग में स्थूल क्रियाओं – मूर्ती पूजन, विभिन्न विधियाँ जैसे  आरती, मन्त्र, ऐसा मत करो, वैसा करो इत्यादि को प्रार्थमिकता दी जाती है जो केवल स्थूल परिणाम दे सकते हैं | धर्म और आध्यात्म में फर्क है |

कर्म के सिद्धांत से भी देखा जाये तो बुरे कर्मों के बुरे परिणाम सामने आ रहे हैं | सिनेमा, टेलिविज़न, धारावाहिक और media  ने तो नकारात्मकता को इतना बढ़ावा दिया है कि अच्छे संस्कारों का गला घोट कर रख दिया है | अतः भक्ति मार्ग में आध्यात्म की पढ़ाई अनियमित रूप से हुई और यही परिणाम होता है अगर माँ बाप अपने हिसाब से बच्चों को संस्कार देते या पढ़ाते | यही कारण है कि पिछले लगभग 80 वर्षों में अनेक पंथ आ गए हैं, जैसे राधा स्वामी, दादा भगवान, ओशो, Art of living , भगवान दादा इत्यादि | इनमें भी कुछ तो सत्संग तक सीमित हैं कुछ हफ्ते में एक बार, कुछ कैम्प लगाते हैं | कुछ धर्म ज्ञानी, केवल रामायण या गीता की व्याख्या अपने ढंग से करते हैं | इसे कनरस भी कहा जा सकता है | इन सबमें संस्कार परिवर्तन के topic को छूते तो हैं परन्तु कैसे करें और क्या करें इस पर कोई विशेष व्याख्या नहीं करते | लोग सुनते हैं और ताली बजा कर चले जाते हैं | उन्होंने जो सुना उसके हिसाब से भक्ति कर लेते हैं | बच्चे को पढ़ाने के लिए पीछे पड़ना पड़ता है, रिविज़न कराना पड़ता है और वो नियमित क्लास में ही संभव है |  अतः इन सब में व्यवस्थित रूप से पढ़ाई नहीं होती |

अब देखें ब्रह्माकुमारी को – एक अच्छी संस्था को युनिफौर्म  चाहिए  जो ब्रह्मा कुमार व् ब्रह्मा कुमारी पहनते हैं | ब्रह्माकुमारीज़ कहते हैं हमारा ईश्वरीय विश्वविद्यालय है |  यहाँ निस्स्वार्थ सेवा होती है अर्थात यहाँ पर पढ़ाई मुफ्त है | इसलिए गरीब से गरीब इंसान भी पढ़ सकता है | किसी चीज़ की अपेक्षा नहीं की जाती | स्वयं के उत्थान के लिए केवल अपने विकारों को दान देने के लिए कहा जाता है | जब आध्यात्मिक जगत में आ गए हैं तो graduate तो हो ही जायेंगे परन्तु यहाँ ईश्वर द्वारा दिए हुए ज्ञान की पढ़ाई होती है, ज्ञान, योग, धारणा और सेवा, चारों सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं | इनमें 100 % अंक प्राप्ति के साधन सिखाए जाते हैं जो पी. एच. डी. कराते हैं और जो आध्यात्मिक जगत की बुनियाद हैं | क्या संस्कार परिवर्तन करें और कैसे करें इसका ज्ञान दिया जाता है, रिविज़न कराया जाता है  और ईश्वर से योग (meditation)  सिखाया जाता है | यह पढ़ाई रोज स्कूल की तरह होती है | Attendance व discipline के भी  marks होते हैं, ठीक स्कूल की तरह |

ब्रह्माकुमारीज अपने को निमित्त मानते हैं यहाँ सिर्फ टीचर होते हैं जबकि अन्य धर्मों में धर्म गुरु होते हैं | अन्य धर्म नैतिकता पर जोर देते हैं, यहाँ आध्यात्म का ज्ञान दिया जाता है, नैतिकता तो अपने आप ही आ जाती है | यहाँ आपको स्वयं अपना गुरु बनाया जाता है | स्कूल की तरह aim और object एक होता है | यहाँ aim है मनुष्य से देवता बनाने का | बाकी चीज़ें तो स्वयं स्वर्णिम परिणाम  स्वरुप आती हैं | रोज की मुरली जिंदगी के हर पहलू को छूती है | ईश्वर स्वयं पढ़ाता है | यह कैसे कह सकते हैं ? जो बारीकी मुरली में बताई जाती है वो केवल ईश्वर बता सकता है | मुरली में रिविज़न भी होता है | क्या कभी सोचा है कि हमको पुरानी बातें क्यों याद रहती हैं ?  क्योंकि हम उन्हें रिवाइज़ और मनन करते रहते हैं और अगर ऐसा न करें तो भूल जाते हैं | हम अच्छी बातों की जगह बुरी बातें याद रखते हैं | मुरली अच्छी बातों को रिवाइज़ कराती है क्योंकि बिना रिविज़न के,  भूलने की  tendency होती है |

इसके बाद जो बच्चे पढ़ कर निकलते हैं उनकी बात ही कुछ और होती है | Result- 100 % हर सब्जेक्ट में | उन्हें खुशी रहती है, भय नहीं होता, वो किसी को दुःख नहीं देते, ज्ञान दान करते हैं, सेवा करते हैं | उनके चेहरे से रॉयल्टी  झलकती है और उज्जवल भविष्य निश्चित होता है |

मेरा background कोई बहुत भक्ति का नहीं था | औरों के जैसे मंदिर इत्यादि में एक औपचारिकता पूरी करता था और सोचता था ईश्वर खुश हो जाएगा | Eat, drink and be merry, ऐसी चलती थी जिंदगी | रिटायरमेंट के बाद 2009 में ब्रह्माकुमारी में जाना शुरू किया | 7 दिन का कोर्स किया | कुछ दिन तो ज्यादा समझ में नहीं आया लेकिन फिर धीरे धीरे समझ में आने लगा | मुरली मैं कभी मिस नहीं करता था | दीदी और बहनों के मार्गदर्शन और मुरली से संस्कार परिवर्तन विकारों और आदतों पर काबू करने की कोशिश करने लगा | लेकिन सबसे पहले लगा कि सिगरेट छोड़ दूं और वो छोड़ दी | फिर बड़ा मन पक्का करके शराब और मांस खाना  छोड़ दिया |

Ladies First सुनते थे लेकिन वास्तव में क्या हम महिलाओं को इतना सम्मान देते हैं जिनकी वो अधिकारी हैं ? यहाँ ये भी देखा कि ब्रह्माकुमारी ही  विश्व की ऐसी संस्था है जिसमे महिलाओं को पूरा सम्मान दिया गया है और वो विश्व परिवर्तन में एक लाजवाब भूमिका निभा रही हैं | इस बात ने भी मुझ पर बहुत प्रभाव डाला |

सुबह 4 बजे उठने की मैं सोच भी नहीं सकता था | लेकिन कोई शक्ति मुझे शक्ति दे रही थी और मैंने कोशिश की | बस, तब से सिवाय ट्रेन सफ़र के अमृत वेला मिस  नहीं हुई | एक दिन योग के दौरान फिर किसी शक्ति ने ब्रह्मचर्य लेने के लिए प्रेरित किया | मैं उठ कर अपनी पत्नी के पास गया और विमर्श किया, सहमति हुई  और वापस आकर ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा की |

मोटे मोटे रूप के विकारों पर विजय प्राप्त की जा चुकी थी | अब नंबर था सूक्ष्म विकारों का |क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इत्यादि | मुरली की बारीकियों में जो बातें बाबा बताता था उन पर सोचने लगा और थोड़ा थोड़ा कंट्रोल शुरू किया | बाबा शक्ति देता रहा |

फिर एक बड़ा चेंज आया | कर्म का सिद्धांत समझ में आ गया | उसने कंट्रोल करने की शक्ति को बढ़ा दिया | आज मैं उन सूक्ष्म कर्मों पर ध्यान देकर काफी हद तक अमल कर रहा हूँ परन्तु इस नर्क की दुनिया में परीक्षा बहुत होती है | यह अंत नहीं है अभी बहुत बाकी है…..

इन सबका परिणाम क्या हुआ ? बचपन से ये सुनते थे कि ईश्वर से जुड़ने पर ऐसा ऐसा हो जाता है और विश्वास नहीं होता था | सोचते थे ऐसे ही कहते रहते हैं पर जब अपने पर गुजार रही है तो समझ में आ गया |

  1. नींद कि गोली खाकर सोना बंद |
  2. शराब पीना बंद |
  3. सिगरेट पीना बंद |
  4. मांस खाना बंद |
  5. ब्रह्मचर्य का पालन पक्का |
  6. अमृत वेले बाबा से बात करना और चार्ट रखना |

परिणाम-…………………..

  1. काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इत्यादि में अत्यंत कंट्रोल |
  2. निस्स्वार्थ सेवा |
  3. परिवार तथा समस्त रिश्तेदार और मित्र इत्यादि सबसे सम्बन्ध अच्छे |
  4. क्षमा मांगने में कोई हिचकिटाहट नहीं |
  5. कोई टेंशन नहीं |
  6. बिना मांगे सब मिल रहा है |

इससे एक बात समझ में आ गई –‘जब तक मैं  planning  करता था तब तक कुछ न कुछ गड़बड़ होता ही रहता था | फिर मैंने अपनी पकड़ को ढ़ील देनी शुरू की | अब लगता है कोई और मेरा काम कर जाता है | कोई गलती नहीं होती | अजीब अजीब बातें हो रही हैं |’ सूक्ष्म में देखें तब पता चलता है, व्यक्त नहीं किया जा सकता | भक्ति मार्ग में सुनते थे जो हो रहा है ईश्वर की मर्ज़ी से हो रहा है जबकि ऐसा नहीं था क्योंकि हम ईश्वर को उसकी मर्ज़ी से चलने का मौका ही नहीं देते थे, सब कुछ मैंने किया ऐसा सोचते थे | मैंने भी अनुभव किया कि जब तक मैं अपनी मर्ज़ी चलाता था तब तक ईश्वर कोई हस्तक्षेप नहीं करता था, वो अपनी मर्ज़ी नहीं चलाता था | अब जब मैंने अपनी मर्ज़ी चलानी बंद कर दी तब ईश्वर अपनी मर्ज़ी मेरे लिए चला रहा है  और सब अच्छा हो रहा है क्योंकि अब वो मेरी पालना कर रहा है, मैं स्वयं नहीं | पहले, ऐसी बातें मैं सुनता था पर विश्वास नहीं होता था | आज मुझे समझ में आ गया और सोचता हूँ पहले क्यों समझ में नहीं आया ? आता कैसे ? ड्रामा में यही जन्म लिखा था ज्ञान प्राप्ति के लिए |  आज बाबा ने इतना सक्षम कर दिया कि मैं  ब्रह्माकुमारी के मंच से कई जगह कर्म के सिद्धांत पर audio visual show देता हूँ | कई लोगों ने इस सिद्धांत को समझ कर और मुझ से सम्बन्ध बना कर बहुत विकार छोड़ दिए, परन्तु मुझ आत्मा की राह में सूक्ष्म में अभी बहुत कुछ बाकी है और उसके लिए बाबा से शक्ति बार बार मांगता हूँ |जिस  विश्वविद्यालय के रिज़ल्ट ऐसे आयें जिससे ये जन्म सुधर जाये और अगले २१ जन्म के लिए स्वर्णिम भाग्य सुनिश्चित हो जाये, तो फिर मुंह से यही निकलता है –वाह बाबा वाह !

                                                                                                          अनिल कुमार विजय